–दिव्या शर्मा —
हिन्दू महासभा द्वारा महात्मा गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे का जन्मदिन मनाना, उसके अध्यक्ष चन्द्रप्रकाश कौशिक द्वारा दिल्ली में गोडसे की मूर्ति स्थापित करने के लिये सरकार से जगह उपलब्ध कराने के लिये पत्र लिखना, भाजपा सांसद साक्षी महाराज द्वारा नाथूराम गोडसे को देशभक्त बताना और इस पर भारत सरकार और उसके प्रधानमंत्री द्वारा चुप्पी साधना इस बात की ओर संकेत करता है कि शांति, अहिंसा, प्रेम, करूणा और सहिष्णुता के लिये दुनियां भर में पहचान बनाने वाला यह देश अब अशांति,हिंसा, नफरत, निष्ठुरता और असहिष्णुता के राजमार्ग पर चलने को तैयार हो रहा है। इस राजमार्ग का शि लान्यास विगत मई 2014 में मोदी सरकार के सत्ता में आते ही हो गया है तथा निर्माण कार्य प्रगति पर है। आर.एस.एस., विश्व हिन्दू परिषद, हिन्दू महासभा, बजरंग दल और उनके सैंकड़ों सहयोगी संगठन इस राजमार्ग का निर्माण कार्य शीघ्र पूर्ण कर जल्द से जल्द औपचारिक लोकार्पण चाहते है।
राजनीति का हिन्दूकरण एवं हिन्दुओं का सैनिकीकरण’ हिन्दू महासभा की टैग लाइन है जो उसने अपनी वेबसाइट के प्रथम पृष्ठ पर प्रदर्शित की है। इस टैग लाइन का परोक्ष अर्थ है ‘राजनीति का सैनिकीकरण’ या अधिक सरल भाषा में कहें तो प्रजातंत्र के बजाय सैन्य तंत्र, जिसका प्रत्येक सैनिक हिन्दू हो। इसी हिन्दू महासभा को अब विश्वास हो गया है कि भारत से गांधी को विस्थापित कर गोडसे को स्थापित करने का समय आ चुका है। हिन्दू महासभा अब अपने उसी लड़ाके को उचित सम्मान दिलाना चाहती है जो उसकी नजर में गांधी की हत्या कर शहीद तो हो गया लेकिन उसे अपनी शहादत के बदले उचित सम्मान नही मिला। संसद में साक्षी महाराज जैसे लोग गोडसे को राष्ट्रभक्त बताकर उसे सम्मानित किये जाने की पैरवी कर रहे है।
प्रश्न यह है कि जिस गांधी को पूरी दुनियां महात्मा कहती है, जिस गांधी को विश्व के कोने-कोने के लोग प्रणाम करते है, उनकी समाधि पर पुष्प अर्पित कर श्रद्धांजलि देते है, और प्रेरणा लेते है, जिस गांधी की समाधि पर शपथ लेने से पहले नरेन्द्र मोदी स्वयं जाकर उन्हे याद करते है, क्या अब उनके हत्यारे की जयंती मनाने और उसकी मूर्ति स्थापित करने के लिये स्थान का आग्रह करने वाले संगठन को सरकार ने मूक सहमति दे दी है? यदि नही, तो ऐसी अनुमति मांगने वाले को तत्काल देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तार क्यों नही किया गया? गोडसे को राष्ट्रभक्त कहने वाले साक्षी महाराज जो भारतीय जनता पार्टी के सांसद है, अभी तक पार्टी में क्यों है? यदि वे पार्टी में है तो क्या इसका आशय यह नही है कि उन्हे पार्टी का समर्थन प्राप्त है। यदि उन्हे पार्टी का समर्थन प्राप्त है तो क्या यह स्पष्ट नही है कि भाजपा भी गोडसे को राष्ट्रभक्त मानती है? यदि इस फार्मूले से भाजपा गोडसे को राष्ट्रक्त मानती है तो क्या गांधी देशद्रोही थे? क्योंकि हत्या करने वाला कोई व्यक्ति तभी राष्ट्रभक्त कहलाता है जब उसने किसी देशद्रोही की या देश के दुश्मन की हत्या की हो।
यह बात सभी जानते है कि प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी आर.एस.एस. के आंगन में पनपे और पुष्पित-पल्लवित हुये है। उन्हे सत्ता के शीर्ष तक पंहुचाने में आर.एस.एस. और हिन्दूवादी संगठनों का बहुत बड़ा योगदान रहा है लेकिन उन्होने स्वयं पूरे चुनाव प्रचार के दौरान अपने भाषणों में सिर्फ विकास का नारा दिया है। प्रधानमंत्री बनने के बाद भी राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उन्होने विकास पुरूष के रूप में अपनी छवि प्रस्तुत की है जिसे देखकर भारत का प्रत्येक नागरिक धर्म और जाति के भेद के बगैर उनसे विकास की उम्मीद कर रहा है।
यदि प्रधानमंत्री गांधीजी के हत्यारे गोडसे का महिमामण्डन करने वाले लोगों, धर्मान्तरण को घर वापसी बताने वाले लोगों और कट्टरपंथी संगठनों द्वारा नित्यप्रति दिये जा रहे बयानों को लेकर अपना रूख स्पष्ट नही करेंगे तो यह माना जायेगा कि गांधी की समाधि पर जाना उनका नाटक मात्र था। इन सभी में उनकी मौन सहमति है और यह सब एक योजना का हिस्सा है जिसे भिन्न-भिन्न लोग अपने दायित्व के रूप में निभा रहे है। यदि ऐसा है तो फिर वह दिन दूर नही जब गांधी को देश निकाला दे दिया जायेगा तथा एक हत्यारे की पूजा करने के लिए हमें विवश किया जायेगा। पर हाँ, फिर देश का मतलब वर्तमान जैसे देश से नही होगा। धर्म के नाम पर इस देश के अनेक टुकड़े हो जायेगें। सभी टुकड़ों के अपने-अपने संविधान होंगे और अपनी-अपनी सेना। फिर न सिर्फ राजनीति का हिन्दूकरण होगा बल्कि इस्लामीकरण, बौद्धीकरण, पारसीकरण, ईसाईकरण आदि भी होगा और इन सबका सैनिकीकरण भी होगा। भारत छिन्न-भिन्न हो जायेगा।
यदि संसद में विपक्ष द्वारा इन मुद्दों पर प्रधानमंत्री के बयान की मांग को लेकर राज्यसभा की कार्यवाही नही चलने दी जा रही है तो यह उचित ही है क्योंकि यदि विपक्ष द्वारा प्रधानमंत्री को मजबूर नही किया गया तो तेजी से निर्मित हो रहे इस राजमार्ग का किसी भी दिन संवैधानिक रूप से लोकार्पण हो सकता है। भारत के अस्तित्व की रक्षा के लिये यह न सिर्फ विपक्ष की जिम्मेदारी है बल्कि उसके अस्तित्व का भी प्रश्न है। विपक्ष के अस्तित्व का प्रश्न इसलिये क्योंकि सैनिकीकरण में विपक्ष नही होता है। सिर्फ बंदूकों का शासन होता है जिसमें प्रजा की आवाज का कोई स्थान नही होता और विरोध करने वाले की आवाज को गोलियों से शांत कर दिया जाता है।
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