संस्मरण – सुंदरलाल पटवा
—— एल.एस. हरदेनिया ——–
मुख्यमंत्री बनने पर पटवा जी ने सर्वप्रथम पत्रकारों से संबंध ठीक बनाने का प्रयास किया। इसी प्रक्रिया के अंतर्गत एक बार पटवा जी ने मुझसे फोन पर बात की और जानना चाहा कि क्या मैं अभी भी 45 बंगले में एक बंगला चाहता हूॅ। पटवा जी ने मुझसे यह जानकारी इसलिए मांगी क्योंकि मुख्यमंत्री कार्यालय में 45 बंगले क्षेत्र में एक बंगला आवंटित करने के अनुरोध वाली मेरी कुछ दरख्वास्तें उन्हें मिलीं थीं। मैंने उन्हें सकारात्मक उत्तर दिया। इस मामले की पृष्ठभूमि यह है कि ‘हितवाद‘ का कार्यालय पहले सदर मंजिल के पास स्थित बादल महल नामक भवन में था। ‘हितवाद‘ आफिस को किसी कारणवश वहां से हटाया गया। इसी दरम्यान ‘हितवाद‘ को रंगमहल टाकीज के पास जमीन आवंटित हो गई। उसी जमीन पर एक विशाल भवन बना। उसी भवन के एक हिस्से में ‘हितवाद ‘का कार्यालय पहुंच गया। 45 बंगले से ‘हितवाद‘ का नया कार्यालय बहुत नजदीक था। अतः मैं तत्कालीन मुख्यमंत्री सकलेचा से अनेक बार 45 बंगले में बंगला आवंटित करने के अनुरोध के साथ मिला।
45 बंगले में आवंटन की कहानी
मैं उन्हें विधिवत दरख्वास्त भी देता था परंतु सकलेचा साफ शब्दों में कह देते थे कि “मैं आपको 45 बंगले में बंगला आवंटित नहीं करूंगा।“ मैं पूछता “क्यों“ तो उनका उत्तर रहता था, “क्योंकि आप मेरे खिलाफ लिखते हैं“। मेरा उत्तर हां में सुनने के बाद पटवाजी ने उनके गृहमंत्री इंदौर के राजेन्द्र धारकर से कह दिया कि वे यह सुनिश्चित करें कि मुझे एक बंगला मिले। मेरे पास धारकर के कार्यालय से फोन आया। तदानुसार मैं उनसे मिलने गया। धारकर के निवास पर के. एस. शर्मा पहले से ही बैठे थे। उस दौरान शर्मा गृह विभाग में विशेष सचिव थे। धारकर ने कहा कि मुख्यमंत्री जी चाहते हैं कि हरदेनिया को एक बंगला आवंटित किया जाए। शर्मा ने कहा कि इस समय एक भी बंगला खाली नहीं है। इस पर धारकर ने पुनः जोर देकर कहा कि मुख्यमंत्री के आदेश का पालन तो होना ही है। इस पर शर्मा ने एक नोटशीट तैयार की जिसमें उन्होंने लिखा कि मुख्यमंत्रीजी चाहते हैं कि वरिष्ठ पत्रकार हरदेनिया को 45 बंगले में एक बंगला आवंटित किया जाए। परंतु वर्तमान में एक भी बंगला खाली नहीं है। इसलिए भविष्य में जब भी कोई बंगला खाली हो, और यदि उसकी आवश्यकता किसी मंत्री के लिए न हो, तो वह प्राथमिकता के आधार पर हरदेनिया को आवंटित किया जाए। इस दरम्यान पता लगा कि चार नंबर का बंगला खाली है परंतु उसमें एक ऐसे अधिकारी ने ताला लगा रखा है जो एक लंबे अरसे से इंदौर में पदस्थ हैं। मैंने यह बात तत्कालीन मुख्य सचिव बी.के. दुबे को बताई। मुख्य सचिव ने संबंधित अधिकारी को चेतावनी भरी सूचना दी कि वे तुरंत बंगले की चाबी लोक निर्माण विभाग को सौंप दें या निलंबन के लिए तैयार रहें। संबंधित अधिकारी, लोक निर्माण विभाग के स्थान पर एक रात मेरे बारामहल स्थित निवास में एक छोटे से पत्र के साथ चुपके से चाबी छोड़ गए। मैंने इस बात की सूचना दुबे को दी। दुबे ने गृह विभाग से कहकर आवंटन का आदेश जारी करवा दिया।
पटवाजी मुख्यमंत्री बने
वर्ष 1990 में हुए विधानसभा के चुनावों में कांग्रेस को बहुमत नहीं मिला। प्रदेश के इतिहास में पहिली बार भारतीय जनता पार्टी ने अपने बलबूते पर विधानसभा में बहुमत हासिल किया। सुंदर लाल पटवा को मुख्यमंत्री बनाया गया। पटवा ने एक परिपक्व राजनीतिज्ञ की तरह शासन किया। चुनाव के दौरान भारतीय जनता पार्टी ने किसानों के सहकारी क्षेत्र के कर्जांे को माफ करने का आश्वासन दिया था। परंतु इस घोषणा को अमलीजामा पहनाना एक अत्यधिक कठिन काम सिद्ध हुआ। इससे उत्पन्न उलझनों को सुलझाने के लिए तत्कालीन मुख्य सचिव आर. पी. कपूर को काफी पापड़ बेलने पडे़। कपूर को रिजर्व बैंक के अधिकारियों से बातचीत करने के लिए कई बार बम्बई जाना पड़ा। कर्ज को माफ करने में सफलता मिल गई, परंतु इस नीति से कृषि के विकास में काफी बाधा उत्पन्न हुई। किसानों को नए कर्जे मिलना बंद हो गए। पुराने कर्जों की भरपाई के लिए सरकारी खजाने से पैसा देना पड़ा।
यद्यपि अनेक अवसरों पर पटवा जी के प्रशासन की मैंने कड़ी आलोचना की परंतु इसके बावजूद उन्होंने कभी मेरे प्रति बेरूखी का रवैया नहीं अपनाया। मैंने जब भी उनसे मिलने का समय मांगा, मिला। उनके साथ मैंने अनेक यात्रायें कीं। मैं उस समय अंग्रेजी साप्ताहिक ‘करेन्ट‘ में भी लिखा था। ‘करेन्ट‘ के संपादक अयूब सैय्यद मेरे पुराने मित्र थे। ‘करेन्ट‘ के प्रकाशन को 50 वर्ष हो चुके थे। उस संदर्भ में उन्होंने एक भव्य आयोजन किया था। आयोजन के मुख्य अतिथि प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह थे। अयूब ने पटवा को भी समारोह में शामिल होने का निमंत्रण दिया। वे पटवा को निमंत्रित करने भोपाल आये। पटवा जी ने सहर्ष निमंत्रण स्वीकार किया और कहा कि वे कार्यक्रम में एक शर्त पर आयेंगे यदि हरदेनिया जी मेरे साथ चलें। पटवा ने अपने बम्बई प्रवास के दौरान एक वरिष्ठ गायक को सम्मानित किया। पटवा जी स्वयं अच्छे गायक हैं। कार्यक्रम के दौरान उनसे भी गाने का अनुरोध किया गया। उन्होंने एक उप-शास्त्रीय गाना गाया।
एक मुख्यमंत्री का गायन सुनकर उपस्थित श्रोता मंत्रमुग्ध हो गये। उस कार्यक्रम को खूब प्रचार मिला। कार्यक्रम के सफल आयोजन में तत्कालीन संस्कृति सचिव अशोक बाजपेयी का विशेष योगदान था। उस समय आर. एस. एस. लाबी बाजपेयी को हटाने के लिए दबाब डाल रही थी।
बाजपेयी ट्रेन से बम्बई आये थे। कार्यक्रम के बाद पटवा ने मुझसे पूछा कि आप जानते हैं अशोक बाजपेयी कहा रूके हैं। मैने कहा मुझे मालूम है। इस पर पटवा ने कहा कि आप बाजपेयी को सूचित कर दें कि वे हमारे साथ सरकारी विमान से ही भोपाल चलें। इसके साथ ही उन्होंने टिप्पणी की कि बाजपेयी तो बहुत उपयोगी अधिकारी है। इस पर मैंने कहा पर आप लोग तो उन्हें संस्कृति सचिव के पद से हटाना चाहते हंै। इस पर पटवा जी ने कहा हटाने का प्रश्न ही नहीं उठता।
एक दिन मुख्यमंत्री के सचिव अरूण भटनागर का फोन आया कि प्रधानमंत्री नरसिंहराव सरगुजा आ रहे हैं। मुख्यमंत्री चाहते हैं कि आप उनके साथ सरगुजा चलंे। भटनागर ने यह भी बताया कि इस संबंध में स्वयं मुख्यमंत्री आप से बात करेंगे। दूसरे दिन, पटवा जी ने फोन करके मुझसे अपने साथ चलने को कहा। उसी हवाई जहाज में हमारे साथ तत्कालीन राज्यपाल कुवंर मेहमूद अली खान, मुख्य सचिव श्रीमती निर्मला बुच और अन्य अधिकारी थे। हम लोग भोपाल से सरगुजा पहुंचे।
उस समय कांग्रेस जोरषोर से यह आरोप लगा रही थी कि सरगुजा में भूख से मौतें हो रही हैं और सरकार मूक होकर सब कुछ देख रही है। कांग्रेस यह मांग भी कर रही थी कि पटवा सरकार को बर्खास्त किया जाए। सरगुजा में कांग्रेस की ओर से एक ज्ञापन भी प्रधानमंत्री को दिया गया। इस ज्ञापन में भी बर्खास्तगी की मांग दुहरायी गई थी। प्रदेश शासन की ओर से विस्तृत जानकारी प्रधानमंत्री को दी गई। सरगुजा में श्यामाचरण शुक्ल समेत कांग्रेस के अनेक नेता आये हुए थे। प्रधानमंत्री ने उसी स्थान पर अधिकारियों से भी बातचीत की। वहीं प्रधानमंत्री की एक आमसभा भी आयोजित की गई थी। आमसभा को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने एक सारगर्भित बात कही। उन्होंने पटवा जी को संबोधित करते हुए कहा कि आपको प्रदेश की जनता ने पांच वर्ष तक शासन करने का जनादेश दिया है। इसी तरह, देश की जनता ने हमे पांच साल तक देश पर शासन करने का आदेश दिया है। आप बिना किसी विघ्नबाधा के प्रदेश पर शासन करें। यह कहकर नरसिंहराव जी ने मध्यप्रदेश कांग्रेस के नेताओं की पटवा सरकार को बर्खास्त करने संबंधी मांग को सार्वजनिक रूप से ठुकरा दिया।
उस दिन प्रधानमंत्री को सरगुजा के अलावा प्रदेश के अन्य स्थानों पर भी जाना था। सरगुजा से मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री के साथ उनके हवाई जहाज में चले गये। मैं कुछ अन्य लोगों के साथ प्रदेश शासन के विमान से इंदौर पहुॅचा। प्रधानमंत्री प्रदेश के अन्य स्थानों का भ्रमण करके इंदौर से वापिस दिल्ली चले गये। पटवा जी इंदौर में रूक गये।
इंदौर हवाई अड्डे पर अनेक मंत्री पहुंच गये थे। उनमें से कई को भोपाल जाना था। मुझे लगा कि यदि पटवा जी इन सभी मंत्रियों को साथ ले जाने का फैसला करेंगेे तो शायद मुझे कार से भोपाल जाना होगा। मैंने इस संबंध में पटवा जी के पी. ए. से बात की पर उन्होंने आश्वस्त किया कि आप पटवा जी के साथ आये हैं, उन्हीं के साथ वापिस जायंेगे। हुआ भी ऐसा ही। न तो किसी मंत्री ने पटवा जी से हवाई जहाज में साथ चलने का अनुरोध किया ना ही पटवा जी ने किसी मंत्री से चलने के लिए कहा।
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