हिटलर मार्क्स और मार्क्सवाद से क्यों घृणा करता था?
—— एल.एस. हरदेनिया ——-
मैंने अभी कुछ दिन पहले हिटलर की आत्मकथा ‘‘मैनकेम्फ’’ फिर से पढ़ी। हिटलर अपनी किताब में सैंकड़ों बार कार्ल मार्क्स और मार्क्सवाद का उल्लेख करता है। उसका यह दृढ़ मत है कि कार्लमार्क्स ने जो कुछ लिखा और किया वह सिर्फ यहूदियों को लाभ पहुंचाने के लिए किया। उसका मुख्य उद्देश्य अपनी विचारधारा का सहारा लेकर वर्तमान मानव व्यवस्था को ध्वस्त कर संपूर्ण दुनिया को यहूदियों को सौंपना था।
हिटलर बार-बार याद दिलाता है कि मार्क्स यहूदी था और उसने अपना संपूर्ण दर्शन का निर्माण यहूदियों के हित साधन के लिए किया था। जिस समय हिटलर ने मार्क्सवाद का इस तरह का मूल्यांकन किया था उस समय तक मार्क्सवाद से प्रेरित सोवियत क्रांति हो चुकी थी। सोवियत क्रांति को असफल करने के सभी पूंजीवादी – साम्राज्यवादी षड़यंत्र असफल हो चुके थे, इसलिए सभी पूंजीवादी देशों को उम्मीद थी कि शायद हिटलर सोवियत समाज व्यवस्था को ध्वंस कर सकेगा। इसलिए लगभग सभी पूंजीवादी देशों ने उसे प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष समर्थन देना प्रारंभ कर दिया था। परंतु थोड़े समय के बाद इन पूंजीवादी देशों को महसूस हुआ कि हिटलर तो उनके अस्तित्व को ही समाप्त करने पर आमादा हैं। इसलिए मजबूरी में पूंजीवादी देशों ने सोवियत संघ से हाथ मिलाकर हिटलर के विरूद्ध मोर्चा खोला।
अंततः सोवियत संघ के मार्शल स्टालिन, ब्रिटेन के विंस्टन चर्चिल एवं अमरीका के रूज़वेल्ट के संयुक्त मोर्चे ने हिटलर और उसकी महत्वाकांक्षाओं को ध्वस्त कर दिया।
हिटलर की मार्क्स और मार्क्सवाद के बारे में क्या सोच थी इसके कुछ उद्धृण मैनकेम्फ से यहां दिए जा रहे हैं।
‘‘मैंने पहली बार यह जाना कि कार्ल मार्क्स जो यहूदी था और उनकी किताब का असली उद्देश्य क्या था? इसी दौरान मुझे उनकी किताब ‘‘केपीटल’’ का असली उद्देश्य समझ में आया। कार्ल मार्क्स ने राष्ट्रों और देशों को नष्ट करने की विस्तृत योजना बनाई थी परंतु उसका मूल उद्देश्य अपने सहधार्मिक यहूदियों की सेवा करना था।
‘‘यहूदी कार्ल मार्क्स ने राज्यों के अस्तित्व का विशेष उद्देश्य बताया था। उसने इस बात को प्रचारित किया था कि राजसत्ता का आमलोगों के प्रति कोई उत्तरदायित्व नहीं है। उसने राज्य को पूरी तरह से नष्ट करने की वकालत की थी।
‘‘रूस में बोलसेविक क्रांति की सफलता का मुख्य कारण लेनिन के विचार नहीं थे वरन् उनकी और उनके समकालीनों की भाषण देने की कला थी।
‘‘सच पूछा जाए तो निरक्षर रूसियों ने कम्युनिलिज़म की क्रांतिकारी विचारों से प्रभावित क्रांति का समर्थन नहीं किया था। रूस के लोगों ने बोलशेविक क्रांति को इसलिए स्वीकारा था क्योंकि क्रांति के नेताओं ने अपने ज़ोरदार भाषणों के द्वारा यह आश्वासन दिया था कि क्रांति के बाद वे रूस को स्वर्ग बनाएंगे।
‘‘जब मैं वयस्क हुआ तो मैंने महसूस किया कि जर्मन कौम के दो दुश्मन हैं-एक मार्क्स और मार्क्सवाद और दूसरे यहूदी और यहूदी धर्म।
‘‘इस बीच मैंने मार्क्सवादी प्रेस में प्रकाशित होने वाले लेखों को पढ़ा। परंतु इन लेखों में प्रकाशित होने वाली सामग्री के बारे में मैंने यह महसूस किया कि इन लेखों के लेखक यहूदी थे। जिन समाचारपत्रों में ऐसी सामग्री प्रकाशित होती थी, उनके मालिक भी यहूदी थे। हिटलर ने ऐसे लेखकों और प्रकाशकों की एक लंबी सूची अपनी किताब में प्रकाशित की है।
‘‘एक समय ऐसा आया जब मैंने यह महसूस किया कि यहूदी जर्मन नहीं हैं और वे ना ही जर्मन होने का दावा कर सकते हैं। बीच-बीच में मैं अपने देशवासियों को यह समझाने का प्रयास करता था कि मार्क्सवाद न सिर्फ जर्मनी के लिए वरन् सारी दुनिया के लिए कितना खतरनाक विचार है। मैं यह समझाते-समझाते थक जाता था और मेरा गला दुखने लगता था, आवाज़ कांपने लगती थी।
‘‘मार्क्सवाद जो वास्तव में यहूदी विचार है जिसने प्रकृति के मूलभूत सिद्धांतों के विपरीत सिर्फ शक्ति/तानाशाही को महत्व दिया था, वह व्यक्ति के अस्तित्व को नकारता है। मार्क्सवाद राष्ट्रीयता और कौम के सिद्धांत को भी नकारता है। उसका विचार है कि राष्ट्रीयता और कौम का मानवीय सभ्यता के निर्माण में कोई महत्व नहीं है। इस तरह मानवीय सभ्यता की नींव को ही तहस-नहस कर देता है।
‘‘यदि यहूदी मार्क्सवादी विचारधारा की सहायता से दुनिया में विजय हासिल करता है तो इतिहास में ऐसा मोड़ आएगा जब इंसानी सभ्यता स्वाहा हो जाएगी और पृथ्वी बिना मानवीय आबादी के चक्कर लगाती रहेगी और सब कुछ मिट जाएगा और पृथ्वी लाखों वर्ष पहले जैसे हो जाएगी।
‘‘मैं आज जो कुछ कह रहा हूं और कर रहा हूं वह मैं निर्माता की इच्छानुसार कर रहा हूं। यदि मैं यहूदी की पहराबंदी कर रहा हूं तो वह भी ईश्वर की इच्छानुसार कर रहा हूं।
‘‘पश्चिमी यूरोप में जो लोकतंत्रात्मक व्यवस्था है वह वास्तव में मार्क्सवादी समाज की स्थापना की पूर्ववर्ती व्यवस्था है। बिना लोकतांत्रिक व्यवस्था के मार्क्सवादी समाज की स्थापना की कल्पना नहीं की जा सकती। लोकतंत्र एक ऐसी व्यवस्था है जिसकी कोख में मार्क्सवादी कीड़े-मकोड़े जन्म लेते हैं जो लोकतंत्रात्मक व्यवस्था को निगल जाते हैं। लोकतंत्रात्मक व्यवस्था एक ऐसी व्यवस्था है जिसके गर्भ से सिर्फ गंदगी निकलती है। इस व्यवस्था को जड़मूल से नष्ट कर मार्क्सवादी व्यवस्था की स्थापना होती है।
‘‘मैंने एक लंबे और गहरे अध्ययन के बाद यह महसूस किया है कि जर्मन राष्ट्र मार्क्सवाद को पूरी तरह से नष्ट करके बच सकता है। मेरी मान्यता है कि मार्क्सवाद का एकमात्र उद्देश्य सभी गैर-यहूदी देशों को नष्ट करना है।
‘‘वैसे सतही तौर पर यह लगता है कि मार्क्सवादी श्रमिक आंदोलन का उद्देश्य मज़दूरों की काम करने की स्थिति में सुधार करना है परंतु असल में उसका उद्देश्य सभी गैर-यहूदी कौमों को समाप्त करना है। अपने विरोधियों को शिकस्त देने के लिए मार्क्सवादी बखूबी प्रजातांत्रिक व्यवस्था का इस्तेमाल करता है और इस तरह अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिए फ्रीहैंड हासिल कर लेता है।
‘‘मार्क्सवाद का एकमात्र उद्देश्य सारी दुनिया को यहूदियों को सौंप देना है। अभी मार्क्सवाद का विरोध एकदम कमज़ोर लोगों द्वारा हो रहा है। मार्क्सवाद को शिकस्त देने के लिए विश्वस्तर पर संगठित शक्ति का निर्माण करना है। इस तरह की ताकत से ही मार्क्सवादियों पर नियंत्रण हासिल किया जा सकता है।’’
शायद हिटलर के इसी नज़रिए से प्रभावित होकर पश्चिम के अनेक राष्ट्रों ने हिटलर के तुष्टिकरण की नीति अपनाई थी। इस तरह के नेताओं में ब्रिटेन के तत्कालीन प्रधानमंत्री नेबिल चेम्बरलेन भी शामिल थे। परंतु ब्रिटेन के नागरिकों को हिटलर की चाल समझ में आ गई तो उन्होंने चेम्बरलेन को हटाकर विन्सटन चर्चिल के हाथ में सत्ता सौंप दी।
‘‘हिटलर को पूरा विश्वास था कि मार्क्सवाद एक नई मानव सभ्यता का निर्माण नहीं कर सकता। मार्क्सवाद के अनुयायी निरक्षर बुद्धिहीन व्यक्ति ही होते हैं। वे नेतृत्व को आंख मूंदकर स्वीकार कर लेते हैं और उसके आदेशों का बिना प्रश्न किए पालन करते हैं।
‘‘मार्क्सवाद और मार्क्स के अनुयायी सिर्फ उनकी प्रचार तकनीक से प्रभावित हो जाते हैं। दरअसल उन्हें नहीं मालूम कि मार्क्सवाद क्या है या मार्क्सवाद की किताबों में क्या लिखा है। जर्मनी के लाखों मज़दूरों में से सिर्फ कुछ दर्जन ही मार्क्सवाद को समझते हैं।’’
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