अनुभव और युवा जोश के मिश्रण से चुनावी वैतरणी पार करेगी कांग्रेस
- योगेन्द्र सिंह परिहार
कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष के तौर पर जब राहुल गांधी ने कमान संभाली तो उन्होंने एक बात पुरजोर तरीके से रखी कि कांग्रेस अब ग्रैंड ओल्ड एंड यंग पार्टी बनेगी और उसकी बानगी देखने को मिली जब छिंदवाड़ा से 9 बार के सांसद अनुभव से सराबोर वरिष्ठ कांग्रेस नेता कमलनाथ को बतौर मध्यप्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष की कमान सौंपी गई वहीं युवा तुर्क लोकसभा में कांग्रेस संसदीय दल के मुख्य सचेतक ज्योतिरादित्य सिंधिया को चुनाव प्रचार अभियान समिति का प्रभारी बनाया गया। साथ ही मध्यप्रदेश कांग्रेस के 4 कार्यकारी अध्यक्ष भी बनाये गए जिसमे भी अनुभव और युवा सोच का मिश्रण व क्षेत्र के हिसाब से प्रतिनिधित्व दिया गया है। युवा नेता जीतू पटवारी मालवा से, निमाड़ से विधान सभा मे उप नेता प्रतिपक्ष बाला बच्चन, बुंदेलखंड से सुरेंद्र चौधरी तो वहीं वरिष्ठ विधायक रामनिवास रावत को चंबल से लिया गया है। राजनीति में इस तरह का समीकरण बिठा पाना बहुत मुश्किल बात है और वो भी तब जब कोई पार्टी 15 साल से विपक्ष में हो। राहुल गांधी का निश्चित ही ये मास्टर स्ट्रोक है जो मध्यप्रदेश में इस तरह का जबरदस्त नेतृत्व तैयार किया गया है।
मध्यप्रदेश में 2018 में होने वाले चुनाव के लिए कांग्रेस ने अब वास्तविक रूप से कमर कस ली है। इस चुनावी समर में पूर्व मुख्यमंत्री व सांसद दिग्विजय सिंह की भी अहम भूमिका रहेगी क्योंकि पूरे प्रदेश में यदि कोने-कोने में किसी नेता के समर्थक हैं तो पहला नाम दिग्विजय सिंह का ही आता है। जब से दिग्विजय सिंह ने 6 माह में 3300 किलोमीटर की नर्मदा जी की दुर्गम रास्तों में पैदल परिक्रमा की है, तब से उनकी कार्यकर्ताओं व जनता में स्वीकार्यता और भी बढ़ गई है इस लिहाज से दिग्विजय सिंह की भूमिका को कोई भी नकार नही सकता।
अगर आप ठीक से प्रदेश में राहुल गांधी की जमावट देखें तो महाकौशल क्षेत्र से कमलनाथ, राजगढ़-गुना से दिग्विजय सिंह, चंबल से ज्योतिरादित्य सिंधिया, भोपाल से सुरेश पचौरी, विंध्य से अजय सिंह ‘राहुल’, निमाड़ से अरुण यादव व बाला बच्चन, आदिवासी अंचल झाबुआ-अलीराजपुर से कांतिलाल भूरिया, मालवा से मीनाक्षी नटराजन, जीतू पटवारी, सज्जन सिंह वर्मा व प्रेमचंद गुड्डू, बुंदेलखंड से सत्यव्रत चतुर्वेदी, राजा पटैरिया, मुकेश नायक व सुरेंद्र चौधरी जैसे अपार क्षमताओं वाले नेतृत्व की अनुभवी वरिष्ठ नेताओं एवं लड़ाकू युवा नेताओं की विशाल फौज है। वहीं पिछड़े वर्ग के नेता राज्यसभा सांसद सादगी की मिसाल राजमणि पटेल व बौद्धिक संपदा के रुप में राज्य सभा सांसद विवेक तनखा कांग्रेस पार्टी के तरकस के अमोघ तीर हैं। आज जो टीम मध्यप्रदेश में कांग्रेस पार्टी के पास है ऐसी जबरदस्त टीम किसी अन्य पार्टी के पास नही है।
कांग्रेस पार्टी में चन्द्रप्रभाष शेखर, महेश जोशी व रामेश्वर नीखरा जैसे खाँटी नेता भी है जो योजनाएं बनाने और उन को अमल कराने में माहिर हैं। उम्र भले ही इन नेताओं की ज्यादा है लेकिन आग आज भी उतनी है जितनी किसी युवा नेता में होती है। मध्यप्रदेश में भाजपा अपने संगठन के मजबूत होने का दावा करती है लेकिन कांग्रेस के इन नेताओं के सामने बीजेपी के सब पैतरे फैल हो जाएंगे बशर्ते सभी कांग्रेसी नेता एक सूत्र में बंधे रहें। कांग्रेस की एकजुटता का जीता जागता उदाहरण हमने चित्रकूट, अटेर, मुंगावली व कोलारस के विधानसभा उपचुनाव में देखा जब एक-एक सीट पर बीजेपी के 50-60 विधायक व सरकार के लगभग पूरे मंत्री व बीजेपी और आरएसएस के सभी अनुषांगिक संगठनों के घनघोर प्रचार के बाद भी जीत कांग्रेस की ही हुई।
राहुल गांधी ने सभी नेताओं को एक सूत्र में पिरोने के लिए कमलनाथ को प्रदेश कांग्रेस का मुखिया बनाया है। कहते हैं आप तब ही कोई उदाहरण प्रस्तुत कर सकते हैं जब आप स्वयं उस पर चले हों और कमलनाथ इस कहावत पर फिट बैठते हैं। छिंदवाड़ा संसदीय क्षेत्र का चहुँमुखी विकास उनके अंदर पनप रही विकास की अपार संभावनाओं को उजागर करता है और एक ही क्षेत्र से 9 बार चुने जाना कमलनाथ की नेतृत्व क्षमता और जनता का उनके प्रति विश्वास को प्रदर्शित करता है। इतने लंबे समय के लिए जनता का विश्वास बनाये रखना और जनता की उम्मीदों पर खरा उतरना अत्यंत चुनौती पूर्ण है। उन चुनौतियों को स्वीकार कर सतत सफलता अर्जित करने वाले कमलनाथ आज संसद में सबसे ज्यादा बार चुने जाने वाले वरिष्ठ सांसद हैं। आज मध्यप्रदेश कांग्रेस को ऐसे ही वरिष्ठ नेतृत्व की ज़रूरत थी जिनकी एक आवाज में सभी खड़े हो जाएं। वरिष्ठ नेता कमलनाथ का इतना बड़ा कद है कि कांग्रेस के कार्यकर्ता नही भी चाहेंगे तो भी उन्हें अनुशासित रहना पड़ेगा। राहुल गांधी ने ठीक समय में अच्छा निर्णय लिया है, मध्यप्रदेश कांग्रेस का कोई भी बड़ा या छोटा नेता कमलनाथ को नज़रंदाज़ नही कर सकता न ही उनकी कोई भी बात टाल सकता है। ऐसा नही है कि अरुण यादव ने अध्यक्ष का पद ठीक से नही संभाला। साढ़े चार साल विपरीत परिस्थितियों में संगठन को चलाना भी बड़ी बात है। हमने अरुण यादव को लाठी खाते भी देखा, पैदल यात्रा करते भी देखा, उनका योगदान निश्चित ही मूल्यवान रहा। केंद्रीय नेतृत्व के पास दुविधा थी कि आगामी विधानसभा कि चुनाव के मद्देनजर वरिष्ठ और कनिष्ठ कार्यकर्ताओं में सामंजस्य बनाने के उद्देश्य से प्रदेश नेतृत्व में बदलाव लाया जाए और इसीलिए राहुल गांधी ने सर्व स्वीकार्यता वाले वरिष्ठ नेता कमलनाथ को मध्यप्रदेश की कमान सौंप कर प्रदेश के कार्यकर्ताओं में नई ऊर्जा का संचार करने का काम किया। कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व के निर्णय पर कहा जा सकता है कि मध्यप्रदेश में अनुभव और युवा जोश के मिश्रण से चुनावी वैतरणी पार कर लेगी कांग्रेस।
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